अमीरों की सरकार  यह देश धीरेधीरे अमीर और गरीब की खाई में बंटता जा रहा है. 1947 के बाद बहुत से सरकारी काम गरीबों को सहूलियतें देने के लिए शुरू किए गए थे. इन में से कुछ में दिखावा था, कुछ में घटिया काम था पर फिर भी जो गरीब इन का फायदा उठा पाते थे, उन्हें कुछ राहत थी. अब सरकार खुल्लमखुल्ला अमीरों को जन्म से ऊंची जाति के होने की वजह से हर तरह की सहूलियत देने वाली नीतियां बना रही है और इस का नतीजा यह होगा कि निचली जाति में पैदा होने वाले गरीब अब और ज्यादा बेहाल होंगे.

इतना जरूर है कि अब सरकार के पास हाथ फैलाने वाले गरीबों की गिनती बढ़ती जा रही है. पहले वे अपने खोल में बंद रहते थे. अब बीसियों चुनाव देखने के बाद उन में हिम्मत आ गई है और अगर उन का हक बनता है तो वे मांगने लगे हैं. सरकार इतने गरीबों के लिए कुछ कर नहीं सकती इसलिए अब उस ने ऐसी नीतियां बनानी शुरू कर दी हैं कि अमीर अपने पैसे के बल पर अच्छी जिंदगी जी सकें और गरीब अपने पिछले जन्मों के पापों का फल भोगते हुए बस बाबाओं के चरणों में लोट कर शुद्ध हो सकें. बिहार के अस्पतालों में सैकड़ों बच्चे पिछले माह मरे थे, वे गरीबों के थे. इंसेफलाइटिस अगर अमीरों के बच्चों को हुआ भी होगा तो उन्हें प्राइवेट नर्सिंगहोमों में जगह मिल गई थी जहां दवाएं एयरकंडीशनिंग, सफाई सब था. हजारों गरीबों को कौन मुफ्त में अस्पताल दे.

रेल मंत्रालय अब पटरियों पर प्राइवेट ट्रेनें चलाने की इजाजत देगा. इन पर बेहद महंगी पर बेहद सुविधाजनक, साफसुथरी, टाइम से ट्रेनें चलेंगी. सरकार ने कहना शुरू कर दिया है कि गरीबों के लिए सस्ते टिकटों का जमाना अब लद गया है. पढ़ाई में तो काफी सालों से यह नीति चल रही है. निजी स्कूल गांवगांव में खुल गए हैं जहां महंगी पढ़ाई दी जा रही है. सरकारी स्कूलों में दिखावा है और मोटे वेतन वाले टीचर बच्चों को पेपर बता कर 10वीं व 12वीं में पास करा कर रिजल्ट तो ठीक कर लेते हैं, पर वैसे कुछ करतेकराते नहीं हैं. इसीलिए 10वीं व 12वीं पास बेरोजगारों की बड़ी भीड़ पैदा हो गई है. सड़कों पर अब ऊबर, ओला चलने लगी हैं और सरकारी बसें न के बराबर रह गई हैं क्योंकि उतना सस्ता किराया ऊंचे लोगों को खलता है.

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