देश के एक बड़े वर्ग की इच्छा को भुनाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने अपने संसदीय बहुमत के सहारे कश्मीर के 1947 के विलय के अनुबंधों को तोड़ते हुए जम्मूकश्मीर को अलग संवैधानिक स्थान देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को एक झटके में कुछ घंटों में समाप्त कर के जम कर वाहवाही लूटी. 1947 से ही कश्मीर भारत के लिए नासूर बना हुआ है और मुसलिमबहुल जनता वाला यह राज्य भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का केंद्र बना हुआ है.

इस ऐतिहासिक फैसले का परिणाम इस समस्या को सुलझाने में हो या न हो कश्मीर के अलावा बाकी भारतीयों को जो खटका रहता था कि उन को विशिष्ट स्तर पर क्यों रखा जा रहा है, समाप्त हो गया है. भारतीय जनता पार्र्टी ने यह कदम उठा कर उन भारतीयों को संतोष दिया है जो एक देश एक संविधान का नारा देते थे. ये लोग बाकी संविधान को कितना मानते थे, कितना समझते थे, यह बात न आज पूछने की है, न कहने की.

भारत सरकार को अंदाजा है कि इस कदम को उठाने के बाद कश्मीर में और आग सुलगेगी. इसीलिए कश्मीर को पूरी छावनी बना डाला गया है और वहां से पर्यटकों को निकाल दिया गया है. यहां तक कि अचानक अमरनाथ यात्रा भी स्थगित कर दी गई. भारत सरकार को अब पूरा एहसास है कि कश्मीर विवाद और उलझेगा, तभी तो वहां भारी संख्या में सेना व अर्धसैनिक बल तैनात किए गए हैं.

देश का हर नागरिक देश की अखंडता व एकता में विश्वास रखता है और जब अरसा पहले तमिलों ने या पंजाब में सिखों ने अलग होने की मांग रखी थी तो भारत सरकार ने बल व कूटनीति दोनों का इस्तेमाल कर के इन इलाकों को शांत किया था. आशा की जानी चाहिए कि यही कश्मीर के साथ होगा.

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