दिल्ली के पास नोएडा में 25 सौ परिवारों की एक बड़ी सोसाइटी पर वहां काम करने वाली एक युवती के घर न लौटने पर पास की बस्ती के लोगों ने बड़ा हमला कर घरों में काम करने वालों के बारे में चौंका दिया है. इस कांड की गूंज पूरी दुनिया में पहुंच गई है कि भारत जो अमीर देशों में गिने जाने की भरपूर कोशिश कर रहा है, अभी तक अपने अमीरोंगरीबों के भेदभावों की खाई को पाट नहीं सका है.

30 साल की शादीशुदा जोहरा बीबी एक मर्चैंट नेवी में काम कर रहे साहब के यहां काम करती थी, पर मेमसाब से खटपट पर उस का एक रात लापता हो जाना उस के शौहर को परेशान कर बैठा और वह बस्ती की भीड़ ले आया. जोहरा तो मिल गई, पर आलीशान मकानों से सटे झुग्गी इलाकों के बारे में सैकड़ों सवाल भी खड़े कर गई. जोहरा कोई गुलाम नहीं थी. वह मरजी से तय हुए वेतन और शर्तों पर काम कर रही थी. यह जाहिर सी बात है कि वह पश्चिम बंगाल से दिल्ली इसलिए आई थी कि गांव में उसे इतने पैसे भी नहीं मिलते थे, जो खूंख्वार कहे जा रहे साहब दे रहे थे.

जोहरा जैसी लाखों औरतें देशभर में घरों में काम कर रही हैं और मेमसाबों को खाना पकाने, झाड़ूपोंछा  करने, बरतन मांजने, बच्चे पालने से छुटकारा दिलाती हैं. ये लाखों औरतें इन मेमसाबों की ज्यादतियों की शिकार नहीं हैं, ये उस सरकार के निकम्मेपन और उस समाज के दकियानूसीपन की शिकार हैं, जो उन्हें अपने गांवों, कसबों में इज्जत की रोटी नहीं दिला पा रहे. ये मालिकों को गालियां दे कर अपना मन हलका कर सकती हैं, पर उस के लिए जिम्मेदार इन का अपना समाज भी है, जो इन्हें न पढ़ने देता है, न हुनर सीखने देता है.

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