वर्ष 2018 में कांग्रेस द्वारा बेंगलुरु में गैरभाजपाई दलों को इकट्ठा करना और अब तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी द्वारा कोलकाता में दोगुने जोश में लगभग सभी गैरभाजपाई दलों के नेताओं को जमा कर लेने की सफलता ने भाजपा को हिला दिया है. बेंगलुरु में जब कांग्रेस और जनता दल (सैक्युलर) ने मिल कर सरकार बनाई थी तो लगा था कि 2014 के बाद यह महज दिल्ली की अरविंद केजरीवाल की जीत जैसी फ्लूक घटना है पर 5 विधानसभा चुनावों के नतीजों, जिन में भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार करने के बावजूद हारी है, ने साफ कर दिया है कि नरेंद्र मोदी की सरकार से मतदाता संतुष्ट नहीं हैं. कोलकाता की रैली में विपक्षियों का मिलन होने से साफ हो गया है कि मोदी की तानाशाही के खिलाफ विपक्षी एकजुट हैं. विपक्षी दलों की मजबूत होती एकता से भाजपा चिंता में है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीमार मंत्री, अस्पतालों से चाहे जो भी कहते रहें और नरेंद्र मोदी चाहे जितना मखौल उड़ाने की शैली में, बचाव करते नजर आएं, उन की परेशानियां बढ़ रही हैं, यह पक्का है.

गलती भाजपा की साफसाफ है. सब से बड़ी बात यह है कि हिंदू धर्म के पाखंड को देश से ऊपर मानने की भाजपा की गलती विपक्षी पार्टियों को फिर से जान दे रही है जिन्हें जनता ने पिछले आम चुनावों में इतिहास के कचरे में डाल सा दिया था. नरेंद्र मोदी की सरकार अपने कार्यकाल के दौरान हिंदू धर्म को चलाने में ज्यादा उत्सुक रही बजाय देश को गरीबी, गंदगी और गहरे गड्ढे से निकालने के.

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