लुटियंस दिल्ली की आवाम ने इस बार भी अरविंद केजरीवाल की दिल खोलकर वोट दिए. विरोधी पार्टियों के खेमों में मातम पसरा हुआ है. भाजपा लगातार हिंदी बेल्टों में चुनाव हारती जा रही है. फिलहाल दिल्ली के चुनावों में दो पार्टियों के बीच ही टक्कर देखने को मिली. भाजपा और आप. भाजपा के पास न तो चेहरा और न ही काम. वहीं इसके उलट आप नेता सीएम केजरीवाल के पास खुद का उनका चेहरा था और पांच साल में दिल्ली में किया गया विकास. इसमें कोई दोराय नहीं कि दिल्ली में सरकारी स्कूलों की हालत बेहतर हुई है. दिल्ली में 24 घंटे बिजली आई और 200 यूनिट तक फ्री बिजली. इसके साथ ही साथ एक ईमानदार छवि.

लगभग 21 दिनों तक चले आक्रामक प्रचार के बावजूद दिल्ली में भाजपा की नैया डूब गई. भाजपा ने ध्रुवीकरण की आक्रामक पिच तैयार कर रखी थी, इसके बावजदू पार्टी को सफलता नहीं मिली. शाहीनबाग में प्रदर्शन से मानों भाजपा को मुंहमागी मुराद जैसा कुछ हाथ लग गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अन्य छोटे से लेकर बड़े नेता हर रैली और सभाओं में शाहीनबाग का मुद्दा उछालते रहे. सभाओं में ये नेता जनता के बीच सवाल उछालते रहे कि आप शाहीनबाग के साथ हैं या खिलाफ?

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इसके अलावा शरजील इमाम के असम वाले बयान, जेएनयू, जामिया हिंसा को भी भाजपा ने मुद्दा बनाकर बहुसंख्यक मतदाताओं को साधने की कोशिश की. छोटे से केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के लिए भाजपा ने जितनी ताकत झोंक दी, उतनी बड़े-बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने मेहनत नहीं की थी. लगभग 4500 सभाओं का आयोजन किया गया. भाजपा ने गली-गली मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद-विधायकों की फौज दौड़ा दी. कोई मुहल्ला नहीं बचा, जहां बड़े नेताओं ने नुक्कड़ सभाएं नहीं कीं. भाजपा ने अपने पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाने की कोशिश की, लेकिन आम आदमी पार्टी की मुफ्त बिजली-पानी देने की योजना पर पार नहीं पा सकी.

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