सहकारी संस्थाओं और दुग्ध उत्पादन के लिए मशहूर मध्य गुजरात में इस बार भाजपा किला बचाने तो कांग्रेस सेंध लगाने में जुटी है. मध्य गुजरात का शहरी इलाका परंपरागत तौर पर लंबे समय से भाजपा के साथ जुड़ा रहा है, जबकि ग्रामीण इलाकों में आदिवासियों के बीच पैठ बनाकर उसने यहां पिछले चुनावों में बढ़त हासिल की थी. जातिगत समीकरणों को दोनों दल किस तरह साधने में लगे हुए हैं, उसका पता चलता है कि श्री खोदालधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेश पटेल, जो हाल के दिनों में लेउवा पटेलों बड़े नेता बनकर उभरे हैं, उन्हें दोनों दल साधने में जुटे हैं.

पिछले दो दशकों से पटेलों का ज्यादातर समर्थन भाजपा के साथ रहा है. लेकिन इस बार पाटीदार आरक्षण आंदोलन के मुद्दे का यहां के नतीजों पर प्रभाव दिखाई देगा. पाटीदारों की नाराजगी दूर करने के साथ भाजपा पिछड़ी जाति के ठाकोर और कोली समुदाय को भी रिझाने में लगी है. पटेलों के बीच भाजपा को पहले भी चुनौती मिली है, जब 2012 में पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने बगावत का झंडा बुलंद किया था. लेकिन मोदी मैजिक के आगे वह टिक नहीं सके.

कांग्रेस इस बार शहरी इलाकों में बेहतर प्रदर्शन करने पर जोर दे रही है. ग्रामीण इलाकों में तो उसे सीटें मिलती रही हैं, लेकिन सत्ता में वापसी के लिए उसकी इस बार शहरी मतदाताओं पर नजर है. प्रचार के दौरान बेरोजगारी, जीएसटी और नोटबंदी के प्रभावों जैसे मुद्दों को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और अन्य नेता प्रमुखता से उठा रहे हैं. यहां पार्टी वोट प्रतिशत बढ़ाने में पसीना बहा रही है.

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