लेखक- सुनील शर्मा

अभी हाल ही में किसी ने सोशल मीडिया के एक मजबूत खंभे फेसबुक पर एक मैसेज अपलोड किया था कि आप सभी अपने घरों से निकल कर वोट देने जरूर जाएं. हर वोट कीमती है. ऐसा ही मैसेज किसी और ने भी लिखा था कि वोट देना हमारा हक ही नहीं फर्ज भी है, क्योंकि हर वोट जरूरी है. एक आम नागरिक के लिए वोट की अहमियत इतनी ज्यादा बता दी गई है कि 26 जनवरी यानी ‘गणतंत्र दिवस’ से एक दिन पहले 25 जनवरी को भारत में ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ मनाया जाता है. इस दिन को मनाने की वजह यह बताई गई है कि भारत जैसे दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र में वोट डालने को ले कर लोगों का रुझान कम होता जा रहा है.

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सवाल उठता है कि वोट देना क्यों जरूरी है और जिन लोगों को हम चुन कर लोकसभा या विधानसभा में भेजते हैं, क्या वे हमारी समस्याओं को हल करने में कामयाब रहते हैं? अगर पिछले 5 साल की बात करें तो देश में भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पूरे बहुमत वाली तथाकथित दमदार सरकार रही. नरेंद्र मोदी के रूप में एक कद्दावर प्रधानमंत्री देश को मिला. लेकिन क्या वे देश की समस्याओं को हल कर सके? नहीं. और कभी कर भी नहीं पाएंगे. सच तो यह है कि कोई भी नहीं कर सकता है. इस की एक बहुत बड़ी वजह है और वह यह है कि जनता नेताओं से तो सवाल करती है कि उन्होंने देश की तरक्की के लिए क्या किया, लेकिन कभी वह खुद से भी सवाल करती है कि उस ने देश को आगे बढ़ाने में अपना क्या योगदान दिया है? गांव हों या शहर, कहीं भी नजर दौड़ा कर देख लीजिए, गंदगी के ढेर मिल जाएंगे, सड़कें और गलियां टूटीफूटी मिलेंगी, नालियों में बजबजाता गंदा पानी ओवरफ्लो हो रहा होगा, काम होगा भी तो भी हर जगह निठल्लों की फौज दिखाई देगी, सरकारी हों या प्राइवेट औफिस के लोग टाइमपास करते मिलेंगे, किसी तरह अपनी 8 घंटे की नौकरी हो जाए, बाकी दुनिया जाए फिर भाड़ में. बहुत से लोग दलील देते हैं कि हम ने तो टैक्स भर दिया, अब सारी जिम्मेदारी सरकार की है.

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