आजादी के की अगर कुछ राजनीतिक घटनाएं याद की जाएं तो पोरो में गिन सकते हैं. 60 के दशक में कांग्रेस का विभाजन, देश में आपातकाल, पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार, 90 के दशक में पहली बार बड़े पैमाने पर आर्थिक बदलाव. इन सब के बाद अगर कुछ बड़ा हुआ तो वो था 2014 का आम चुनाव. वर्षों बाद किसी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत मिला था. ये चुनाव कई मायनों पर खास था. एक मुख्यमंत्री का पीएम पद के लिए नाम आना फिर उस चुनाव की रणनीति. हाईटेक चुनाव, बेशुमार दौलत लगाया गया. उसके बाद कुछ तो था तो अब तक गुम लग रहा था. वो था देश का विपक्ष. वही विपक्ष जिसके बिना लोकतंत्र अधूरा रहता है. इस अधूरेपन को देश 2014 से महसूस कर रहा था लेकिन इसको पूरा किया शनिवार को.

शनिवार को कांग्रेस ने दिल्ली के रामलीला मैदान पर 'भारत बचाओ' रैली का आयोजन किया. इस रैली में गजब की भीड़ पहुंची. कांग्रेस ने इसको सफल बनाने के लिए प्रदेशों के मुखियाओं को पहले ही आदेश दे दिया था. फिर क्या था. राहुल गांधी के तेवर सातवें आसमान में थे. एक के बाद एक मुद्दे लाकर वो सरकार को घेर रहे थे. ऐसे मुद्दे जो वाकई में आम आदमी के थे. वो मुद्दे जिनसे हर रोज हमको-आपको जूझना पड़ता है.

राहुल गांधी ने कहा, "कल संसद में भाजपा के लोगों ने कहा कि आप अपने भाषण के लिए माफी मांगिए. लेकिन मैं आपको बता दूं कि मेरा नाम 'राहुल सावरकर' नहीं है, मेरा नाम 'राहुल गांधी' है. मर जाऊंगा, मगर माफी नहीं मांगूंगा. सच बोलने के लिए मैं माफी नहीं मांगूंगा. कांग्रेस का कोई व्यक्ति माफी नहीं मांगेगा." राहुल ने कहा, "माफी (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी को मांगनी है इस देश से. उनके असिस्टेंट (गृहमंत्री) अमित शाह को देश से माफी मांगनी है," क्योंकि उन्होंने देश को बर्बाद कर दिया है.

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