हम यहां बात करेंगे महाराष्ट्र की  सियासत में पहली बार चुनावी मैदान में उतरे दो युवा नेताओं की. जिनको राजनीति उनके वंश से मिली हैं. पहले हैं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे और दूसरे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख और कद्दावर नेता शरद पवार के पोते रोहित पवार. दोनों का ये पहला चुनाव है.

महाराष्ट्र की सियासत में हमेशा से ही शिवसेना का दबदबा रहा है. शिवसेना राज्य की सत्ताधारी पार्टियों में से एक रही है और इसके संस्थापक बाल ठाकरे राज्य की राजनीति में हमेशा ही एक कद्दावर शख्सियत रहे हैं उनके देहान्त के बाद पार्टी की  बागडोर उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने संभाली. राज्य में अभी बीजेपी और शिवसेना की गठबंधन सरकार है. इन दोनों का गठबंधन भी ऐसा है कि दोनों एक दूसरे को भर-भर कोसते भी हैं और चुनाव के समय दोनों पार्टियों के नेता मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके गठबंधन का ऐलान भी करते हैं. खैर ये एक अलग मसला है. अभी हम बात करेंगे वंशवाद की राजनीति पर.

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शिवसेना ने एक बार साल 1995 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद हासिल किया. इसके साथ ही साल 2014 से वह केंद्र और राज्य में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार का हिस्सा भी रही है. लेकिन खुद को रिमोट कंट्रोल बताने वाले इसके संस्थापक बाल ठाकरे ने चुनावी मैदान में कभी अपना हाथ नहीं आजमाया. न तो वे और न ही उनके बेटे उद्धव कभी चुनाव लड़े. 2012 के बाद से शिवसेना की कमान उद्धव के हाथों में ही है.

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