एक समय था जब पंजाब माली तौर पर मजबूत था. वहां के किसान उत्तर भारतीय मजदूरों की जीतोड़ मेहनत के बलबूते चमचमाती गाडि़यों और कोठियों के मालिक बन बैठे थे. यह वह दौर था जब उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों के चरमराते सिस्टम और बेरोजगारी से लोग अपना घरबार छोड़ने पर मजबूर हो गए थे और पंजाब, दिल्ली जैसे राज्यों में मेहनतमजदूरी कर के अपनी रोजीरोटी चला रहे थे. वक्त ने करवट बदली तो सरकारी योजनाओं खासकर मनरेगा ने उन्हें वापसी का रास्ता दिखाया.

पंजाब के किसानों की हालत अब बेहद खस्ता है, क्योंकि ज्यादातर उत्तर भारतीय मजदूर या तो दूसरे राज्यों की ओर रुख कर चुके हैं या फिर अपने राज्य लौट गए हैं. अब न तो सस्ते में काम करने वाले मजदूर रह गए हैं और न ही पंजाब में वैसी खुशहाली है. गेहूं और खरीफ फसलों की पैदावार कर भारतीय इकोनौमी को मजबूती देने वाला पंजाब अब नशे की गिरफ्त में है. ज्यादातर खेत बंजर पड़े हैं और किसानों के चेहरे पर पहले जैसी हंसी भी नहीं है. क्यों भागने पर मजबूर हाल ही में हुई एक हिंसक घटना से हीरों और कपड़ों के प्रोडक्शन में आगे रहने वाले गुजरात के कारोबारियों के चेहरे सूखे हुए हैं. मालूम हो कि सूरत, अहमदाबाद जैसे गुजरात के बड़े शहरों में कपड़ा मिलों में काम करने वाले और हीरों को तराश कर चमकाने वाले उत्तर भारतीय मजदूर अब गुजरात से बड़ी तादाद में भाग रहे हैं.

दरअसल, यह भागना राज्य में भड़की एक हिंसा के बाद हो रहा है जब 28 सितंबर, 2018 को साबरकांठा जिले में एक 14 महीने की मासूम बच्ची के साथ बलात्कार के आरोप के बाद राज्य के 6 जिलों में हिंदीभाषी लोगों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी थी. हालांकि इस बलात्कार के आरोप में बिहार के एक मजदूर के पकड़े जाने के बाद भड़की हिंसा के खिलाफ तकरीबन 450 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 50 से ज्यादा प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं. घटना से उपजा संकट इस घटना से उपजे संकट ने एक तरफ जहां वहां काम कर रहे मजदूरों को भागने के लिए मजबूर कर दिया तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दलों की सियासी रोटियां भी सिंकनी शुरू हो गईं.

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