सरहद पर भारतीय जवान हमेशा हमारी मुल्क की सुरक्षा करने के लिए हर परिस्थितियों से जूझते हुए डटे रहते हैं. ठंड हो बारिश हो या फिर प्रचंड गर्मी ये जवान हमेशा दुश्मनों के लिए काल बने रहते हैं. सियाचिन में ये लड़ाई और भी ज्यादा कठिन  हो जाती है वहां दुश्मन के अलावा मौसम से ही लड़ना पड़ता है. लेकिन कमोबेश हमारे जवानों के पास आज भी मौसम के खिलाफ लड़ने के लिए जरूरी साजो समान नहीं है.

भारतीय सेना के जवानों के पास पहनने के लिए स्नो गॉगल्स और मल्टीपर्पस जूते नहीं हैं और सियाचिन व लद्दाख के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में खाने के लिए जरूरी स्वीकृत भोजन उपलब्ध नहीं है. अत्यधिक ठंड की वजह से इन्हें कई तरह के रोगों का सामना करना पड़ता है. नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.

सूत्रों ने कहा कि यूनियन गवर्नमेंट (डिफेंस सर्विसेज)-आर्मी पर कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि सेना के जवान ऊंचाई वाले इलाके में भोजन के अधिकृत दैनिक उपयोग से भी वंचित है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जवानों की कैलोरी इनटेक से भी समझौता किया गया है.

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यूनियन गवर्नमेंट (डिफेंस सर्विसेज)-आर्मी की कैग रिपोर्ट राज्यसभा में रखी गई, लेकिन इसे लोकसभा में नहीं रखी जा सकी, इसलिए नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक राजीव महर्षि रिपोर्ट जारी नहीं कर सके. लेकिन राज्यसभा के सूत्रों ने दावा किया कि ऑडिट ऊंचाई वाले इलाकों में भारतीय सेना की स्थिति को उजागर करती है.

स्नो गॉगल्स की कमी 62 फीसदी से 98 फीसदी है, जिससे जवानों का चेहरा व आंखें ऊंचाई वाले इलाकों में खराब मौसम में बिना ढकी रहती हैं। इससे भी बुरी बात है कि जवानों को पुराने मल्टीपर्पस जूतों का इस्तेमाल करना पड़ता है.

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