बिहार में बहुत ज्यादा गरीबों की हालत कमोबेश वही है, जो आजादी के पहले थी. आज भी निहायत गरीब रोटी, कपड़ा, मकान, तालीम और डाक्टरी सेवाओं जैसी बुनियादी जरूरतों से कोसों दूर है. समाज में पंडेपुजारियों, मौलाना और नेताओं के गठजोड़ ने आम लोगों को धार्मिक कर्मकांड, भूतप्रेत, यज्ञहवन के भरमजाल में उल झा कर रख दिया है.

पंडेपुजारियों द्वारा दलित और कमजोर तबके के बीच इस तरह का माहौल बना दिया है कि ये लोग अपना कामकाज छोड़ कर धार्मिक त्योहारों, पूजापाठ, पंडाल बनवाने के लिए चंदा करने, नाचगाने, यज्ञहवन कराने में अपने समय को गंवा रहे हैं. कसबों और गांवों में भी महात्माओं के प्रवचन, रामायण कथा पाठ, पुत्रेष्टि यज्ञ समेत कई तरह के धार्मिक आयोजन आएदिन कराए जाते हैं. इन कार्यक्रमों का फायदा साधुसंन्यासी, पंडेपुजारी वगैरह उठाते हैं.

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गांवों में यज्ञ का आयोजन किया जाता है. उस यज्ञ की शुरुआत जलभरी रस्म के साथ होती है. नदी से हजारों की तादाद में लड़कियां और औरतें सिर पर मिट्टी के बरतन में नदी का जल ले कर कोसों दूरी तय कर आयोजन की जगह तक पहुंचती हैं. इस काम में ज्यादातर लड़कियां और औरतें दलित और पिछड़ी जाति की होती हैं और साथ में घोड़े और हाथी पर सवार लोग अगड़ी जाति के होते हैं.

जहां पर यह यज्ञ होता है, वहां अगलबगल के गांव के दलित और पिछड़ी जाति के लोग अपना सारा कामधंधा छोड़ कर इन कार्यक्रमों में बिजी रहते हैं यानी अगड़े समुदाय के लोग मंच संचालन, पूजापाठ और यज्ञहवन कराने में और दलित व पिछड़े तबके के लोग यज्ञशाला बनाने, पानी का इंतजाम करने यानी शारीरिक मेहनत वाला काम करते हैं.

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