भीड़ द्वारा हत्याओं का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है. महाराष्ट्र के धुले जनपद के राइनपाड़ा गांव के गांव वालों ने बच्चाचोर होने के शक पर 5 बेकुसूर नौजवानों को बेरहमी के साथ लाठीडंडों से पीटपीट कर मार डाला. मारे गए नौजवान एक बस से उतरे और एक बच्चे से कहीं जाने का रास्ता पूछ रहे थे. इतने में किसी ने उन्हें बच्चाचोर कह दिया. इतना सुनते ही वहां मौजूद लोग उन पांचों पर टूट पड़े और लाठीडंडों से पीटने लगे.

उन नौजवानों ने काफी समझाया कि ऐसा नहीं है, लेकिन भीड़ ने उन की एक नहीं सुनी और पांचों की जान ले ली. पुलिस ने 10 लोगों को गिरफ्तार भी किया. इसी तरह त्रिपुरा में सुकांत चक्रवर्ती नामक एक शख्स की गांव वालों ने हत्या कर दी. सुकांत चक्रवर्ती सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही बच्चे की चोरी करने वाली अफवाहों को दूर करने के लिए एक गांव से दूसरे गांव जा रहा था. वह लाउडस्पीकर से यह प्रचार कर रहा था कि आप अफवाहों पर ध्यान नहीं दें. इसी दौरान लोगों ने पीटपीट कर उसे मार डाला और 2 दूसरे लोगों को बुरी तरह से घायल कर दिया.

हो सकता है कि इन वारदातों के कुसूरवार को सजा भी मिल जाए, लेकिन जो लोग मारे गए वे वापस नहीं आएंगे. जिन परिवारों के सदस्य मारे गए, उन का दुख कम नहीं होगा. अगर कोई कुसूरवार ही हो तो क्या भीड़ को कानून अपने हाथ में लेने का हक है? कानून इस की इजाजत नहीं देता. भीड़ का फर्ज बनता है कि वह कुसूरवार को पुलिस के हवाले करे. अगर भीड़ ही सारे फैसले करने लगी तो देश में पुलिस की क्या जरूरत है?

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