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2-3 घंटेउस बार में गुजार कर वह वापस आई तो मुग्धा काफी बहकीबहकी और दार्शनिकों की सी बातें कर रही थी कि जीवन नश्वर है, जवानी बारबार नहीं आती, इसे जीभर कर एंजौय करना चाहिए. अच्छी बात यह रही कि मुग्धा ने उसे नशे के लिए बाध्य नहीं किया था. हां, पहली बार स्नेहा ने सिगरेट के एकदो कश लिए थे जो चौकलेट फ्लेवर की थी.

रूम पर आ कर उसे बार के उन्मुक्त दृश्य और मुग्धा की बातें याद आती रहीं कि ड्रग्स का अपना एक अलग मजा है जिसे एक बार चखने में कोई हर्ज नहीं, फिर तो जिंदगी में यह मौका मिलना नहीं है और यह कोई गुनाह नहीं बल्कि उम्र और वक्त की मांग है. आजकल हर कोई इस का लुत्फ लेता है. इस से एनर्जी भी मिलती है और अपने अलग वजूद का एहसास भी होता है.

अगले सप्ताह वह फिर मुग्धा के साथ गई और इस बार हुक्के के कश भी लिए. कश लेते ही वह मानो एक दूसरी दुनिया में पहुंच गई. नख से ले कर शिख तक एक अजीब सा करंट शरीर में दौड़ गया. फिर यह हर रोज का सिलसिला हो गया. शुरू में उस का खर्च मुग्धा उठाती थी. अब उलटा होने लगा था. मुग्धा का खर्च स्नेहा उठाती थी, जो एक बार में 2 हजार रुपए के लगभग बैठता था.

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स्नेहा झूठ बोल कर घर से ज्यादा पैसे मंगाने लगी. यहां तक तो बात ठीकठाक रही. लेकिन एक दिन मुग्धा के एक दोस्त अभिषेक (बदला नाम) के कहने पर उस ने चुटकीभर एक सफेद पाउडर जीभ पर रख लिया तो मानो जन्नत जमीन पर आ गई. अभिषेक ने इतनाभर कहा था. इस हुक्कासिगरेट में कुछ नहीं रखा रियल एंजौय करना है तो इसे एक बार चख कर देखो.

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