मोबाइल क्रांति ने पुलिस को ऐसा हथियार दे दिया है, जिसे वह कभी खोना नहीं चाहेगी. छोटेबड़े अपराधों की गुत्थी सुलझाने में सर्विलांस का रोल बेहद अहम हो गया है. निगरानी करने और अपराधी तक पहुंचने में इस से बड़ा जरीया कोई दूसरा नहीं है.

वैसे, सर्विलांस को लोगों की निजता में सेंध मान कर विरोध का डंका भी पिटता रहा है कि कानून व सिक्योरिटी के नाम पर पुलिस कब और किस की निगरानी शुरू कर दे, इस बात को कोई नहीं जानता. लेकिन पुलिस न केवल डकैती, हत्या, लूट, अपहरण व दूसरे अपराधों को इस से सुलझाती है, बल्कि अपराधी इलैक्ट्रोनिक सुबूतों के चलते सजा से भी नहीं बच पाते हैं.

क्या है सर्विलांस

आम भाषा में मोबाइल फोन को सैल्युलर फोन व वायरलैस फोन भी कहा जाता है. यह एक इलैक्ट्रोनिक यंत्र है. अपराधियों तक इस की पहुंच आसान हो जाती है. उन की लोकेशन को ट्रेस करने में सब से अहम रोल सर्विलांस का होता है. किसी अपराधी की इलैक्ट्रोनिक तकनीक के जरीए निगरानी करना ही सर्विलांस कहा जाता है.

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80-90 के दशक तक पुलिस अपनी जांच के लिए मुखबिरों पर निर्भर रहती थी, लेकिन साल 1998 में आपसी संचार के लिए मोबाइल कंपनियों के आने के साथ ही अपराधियों ने वारदातों में मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. पुलिस ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाए और सर्विलांस का दौर शुरू हो गया.

इस से निगरानी और अपराध की जांच का तरीका बदल गया. कई बड़ी वारदातों को सर्विलांस के जरीए आसानी से सुलझाया गया, तो यह पुलिस के लिए मारक हथियार साबित हुआ. इस के बाद पुलिस वालों को सर्विलांस के लिए ट्रेनिंग दी जाने लगी.

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