आसपास की ढाणियों के बच्चे इकट्ठा हो कर सुबह स्कूल जाते थे और छुट्टी होने के बाद वापस अपनी अपनी ढाणी में आ जाते थे.

उस दिन रीना के घर मेहमान आए हुए थे. इस वजह से सुबह उस ने अपनी मां के काम में हाथ बंटाया, जिस से उसे कुछ देर हो गई. नतीजतन, आसपास की ढाणी के बच्चे स्कूल चले गए.

काम निबटा कर रीना भी तैयार हो कर स्कूल की तरफ दौड़ पड़ी. वह अभी स्कूल से तकरीबन एक किलोमीटर दूर थी कि पास की ढाणी का एक नौजवान विक्रम आता दिखा.

रीना स्कूल के लिए लेट हो गई थी. लिहाजा, वह भागती हुई जा रही थी. तभी विक्रम ने उसे पुकारा, ‘‘रीना, आज अकेले ही स्कूल जा रही हो. दूसरे बच्चे कहां हैं?’’

‘‘मैं लेट हो गई हूं. सब बच्चे पहले ही स्कूल चले गए हैं,’’ रीना ने हांफते हुए कहा.

यह सुन कर विक्रम के सिर पर शैतान सवार हो गया. उस ने इधरउधर निगाह डाली. दूर तक कोई नहीं दिख रहा था. चारों तरफ रेतीले टीले थे. बीच में आक, खेजड़ी, केर के पेड़ों के झुरमुट थे.

विक्रम ने रीना को आवाज दे कर रुकने का इशारा किया, ‘‘रीना, जरा रुकना. तुम अपने पापा को यह चिट्ठी दे देना,’’ वह अपनी जेब में हाथ डालते हुए उस के नजदीक आ गया.

रीना बोली, ‘‘जल्दी चिट्ठी दो. मैं स्कूल के लिए लेट हो रही हूं.’’

पास आ कर विक्रम ने उसे दबोच लिया. रीना डर के मारे थरथर कांप रही थी, फिर भी वह हिम्मत जुटा कर बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो... छोड़ो मुझे.’’

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