सिंधु ने बैडमिंडन वर्ल्ड चैंपियनशिप में जापान की नोजोमी ओकुहारा को 21-7, 21-7 से हरा दिया. बैडमिंटन कोर्ट में सिंधु को ये इतिहास रचने में तीन बार प्रयास करना पड़ा लेकिन तीसरी बार इतिहास भी रचा.

हम आपको बताते हैं कि विश्व विजेता पीवी सिंधु का यहां तक का सफर कैसा रहा. सिंधु कोर्ट के बाहर कैसी हैं.  2017, 2018 और फिर 2019 सिंधु लगातार तीन बार विश्व चैंपियनशिप के सेमीफाइनल पर पहुंची थी लेकिन बदकिस्मती उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी और वो लगातार फाइनल हार रहीं थी लेकिन 2019 में उनके सामने वही खिलाड़ी थी जिसने 2017 में उनका सपना तोड़ा था. पीवी सिंधु ने जापान की नोजोमी ओकुहारा को 21-7 से हरा हिसाब चुकता किया.

पिछले तीन वर्षों में दो विश्व चैंपियनशिप के फाइनल, ओलंपिक और राष्ट्रमंडल खेलों के फाइनल में हार के बाद सिंधु को विश्व खिताब यूं ही नसीब नहीं हुआ. इस विश्व चैंपियनशिप के लिए वह अपनी तैयारियों के हर पक्ष पर विजय पाना चाहती थीं. इसके लिए उन्होंने गोपीचंद अकादमी में विदेशी पुरुष स्पारिंग पार्टनरों (ट्रेनिंग कराने वाले बैडमिंटन खिलाड़ी) से न सिर्फ लगातार अभ्यास किया बल्कि अपने को फिट रखने के लिए उन्होंने गोपी अकादमी से बाहर का भी सहारा लिया. विश्व खिताब के अभियान में कहीं कमी न रह जाए इस लिए सिंधु ने इसी माह बैंकाक में हुई थाईलैंड ओपन सुपर सीरीज से भी अंतिम क्षणों में नाम वापस ले लिया था.

सिंधु का यहां तक का सफर आसान नहीं था. खिताब जीतने के बाद सिंधु ने किम जी ह्यून और गोपीचंद को धन्यवाद दिया. सिंधु के गुरू पुलेला गोपीचंद ने सिंधु के साथ बहुत मेहनत की. हैदराबाद के साई स्पोर्टस् कॉम्पलेक्स में सिंधु के साथ गोपीचंद घंटों ट्रेनिंग देते थे और पसीना बहाते थे. दूसरा नाम था हिरोशिमा एशियाड में टीम का गोल्ड जीतने वाले कोरियाई किम थीं जिन्होंने इस साल सिंधु के खेल में कमियों को दूर करने का बीड़ा उठाया.

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